प्रदेश में बीटीसी प्रशिक्षण के जरिए प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती नहीं होगी। यही नहीं एनसीटीई की गाइड लाइन नहीं आने से सूबे में प्राइमरी शिक्षकों की नियुक्ति पर अघोषित रोक लगी है।
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) एक्ट के तहत केंद्र सरकार की व्यवस्था प्रभावी हो चुकी हैं। इससे सूबे में शिक्षकों की नियुक्ति और प्रशिक्षण पर पेच फंस गया है। राज्य सरकार प्राइमरी शिक्षकों के तौर पर बीएड डिग्रीधारी और बीटीसी प्रवेश परीक्षा नहीं करा पा रही है। एक्ट के मुताबिक देशभर में प्राइमरी शिक्षकों की नियुक्ति के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों में एकरूपता लाई जाएगी। इस आधार पर प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती के लिए दो वर्षीय बीटीसी प्रशिक्षण के नाम और पाठ्यक्रम में भी बदलाव किया जाएगा। शिक्षा महकमे ने इस संबंध में शासन को प्रस्ताव सौंप दिया है।
आरटीई के तहत ही जनवरी, वर्ष 2012 से पहले राज्यों को प्रशिक्षण कोर्स का स्वरूप तय होने और इस आधार पर प्रशिक्षण व्यवस्था बनाने में लगने वाले समय के मद्देनजर बीएड डिग्रीधारकों की बतौर प्राइमरी शिक्षक नियुक्ति करने की हरी झंडी दी गई है, लेकिन इसके साथ ही टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट की अनिवार्यता भी जोड़ी गई है। इस टेस्ट की गाइड लाइन भी एनसीटीई को तैयार करनी है।
एनसीटीई की ओर से अब तक यह गाइड लाइन जारी नहीं होने से सूबे में बीटीसी प्रवेश परीक्षा अथवा विशिष्ट बीटीसी के जरिए प्राइमरी शिक्षकों की जल्द भर्ती के राज्य सरकार के अरमानों पर पानी फिर गया है। नए मानकों के मुताबिक प्राइमरी शिक्षकों के तकरीबन दो हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं। महकमे ने बीटीसी का नाम परिवर्तित कर डिप्लोमा इन एलिमेंटरी एजुकेशन (डीईएलईडी) रखने की संस्तुति की है। नाम बदलने की स्थिति में इस संबंध में प्रस्तावित प्रारंभिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली में भी इसे शामिल किया जाएगा। यही नहीं विशिष्ट बीटीसी का प्रशिक्षण ले रहे 1300 प्रशिक्षणार्थियों के बैच को टीइटी से गुजरना होगा अथवा नहीं, इस बारे में भी असमंजस बना हुआ है। दरअसल, यह बैच दो वर्षीय पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद अप्रैल, 2012 में पास आउट होगा। जनवरी, 2012 के बाद एक्ट के तहत नई व्यवस्था अनिवार्य रूप से लागू हो जाएगी। इस बारे में स्थिति स्पष्ट करने को राज्य एनसीटीई को पत्र भेज चुका है। लेकिन कोई जवाब नहीं आया। अब राज्य दोबारा रिमाइंडर भेज रहा है। एनसीटीई से जवाब आने तक प्रशिक्षण और नई नियुक्तियों को लेकर सरकार के कदम थम गए हैं।
आइये एक साथ बैठे , मिलकर कुछ चर्चा करे .... ब्लोगिंग को एक नई पहचान दे । ब्लोगिंग केवल शब्दों का खेल भर नही है ..... आइये कुछ जानकारी भी हासिल करे । खोजी प्रवृति के लोगों का दिल से स्वागत है ....
Wednesday, December 22, 2010
क्रिसमस व नए साल का जश्न फीका रहने के आसार हैं।
विश्व प्रसिद्ध जिम कार्बेट नेशनल पार्क समेत दूसरे स्थानों पर जंगलों के आसपास के रिसॉर्ट एवं होटलों में इस बार क्रिसमस व नए साल का जश्न फीका रहने के आसार हैं। रिसॉर्ट और होटलों में न तो डीजे का शोर होगा और न वहां तेज रोशनी ही की जा सकेगी। पार्किंग भी अपने परिसरों में होगी और शाम ढलते ही कोई भी सैलानी जंगल की ओर रुख नहीं कर सकेगा। यानी, जश्न के नाम पर ऐसा कोई काम नहीं होने दिया जाएगा, जिससे जंगल का कानून टूटे।
राज्य वन एवं पर्यावरण सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष अनिल बलूनी ने बताया कि होटलों, रिसॉर्ट में क्रिसमस और नए साल के जश्न से वाइल्ड लाइफ में कोई खलल न पड़े, इसके लिए यह गाइडलाइन जारी की गई है। 25 और 31 दिसंबर को वन महकमा विशेष सतर्कता बरतेगा। उन्होंने कहा कि वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी दोनों अवसरों पर होटल, रिसॉर्ट की निगरानी रखेंगे।
श्री बलूनी के अनुसार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी निर्देश दिए गए हैं कि वह कार्बेट नेशनल पार्क समेत दूसरे स्थानों पर जंगलों के आसपास के होटल व रिसॉर्ट में यंत्र लगाए, ताकि यह पता चल सके कि वहां कोई ऐसा शोर तो नहीं हुआ, जिससे वन्य जीवों को दिक्कत का सामना करना पड़ा हो। उन्होंने बताया कि नियमों का पालन न करने वाले होटलों व रिसॉर्ट के खिलाफ सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
गौरतलब है कि कार्बेट नेशनल पार्क के आसपास ही सर्वाधिक डेढ़ सौ के करीब होटल व रिसॉर्ट हैं। क्रिसमस और न्यू इयर सेलिब्रेशन के मद्देनजर ये पैक रहते हैं। वहां डीजे का शोर, तेज लाइटों का इस्तेमाल, शाम ढलते ही वहां रहने वालों के जंगल की ओर रुख करने की शिकायतें मिलती रही हैं। इस बार ऐसा नहीं हो पाएगा। वन विभाग की कवायद में कार्बेट पार्क पर इस बार विशेष फोकस रहेगा।
राज्य वन एवं पर्यावरण सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष अनिल बलूनी ने बताया कि होटलों, रिसॉर्ट में क्रिसमस और नए साल के जश्न से वाइल्ड लाइफ में कोई खलल न पड़े, इसके लिए यह गाइडलाइन जारी की गई है। 25 और 31 दिसंबर को वन महकमा विशेष सतर्कता बरतेगा। उन्होंने कहा कि वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी दोनों अवसरों पर होटल, रिसॉर्ट की निगरानी रखेंगे।
श्री बलूनी के अनुसार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी निर्देश दिए गए हैं कि वह कार्बेट नेशनल पार्क समेत दूसरे स्थानों पर जंगलों के आसपास के होटल व रिसॉर्ट में यंत्र लगाए, ताकि यह पता चल सके कि वहां कोई ऐसा शोर तो नहीं हुआ, जिससे वन्य जीवों को दिक्कत का सामना करना पड़ा हो। उन्होंने बताया कि नियमों का पालन न करने वाले होटलों व रिसॉर्ट के खिलाफ सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
गौरतलब है कि कार्बेट नेशनल पार्क के आसपास ही सर्वाधिक डेढ़ सौ के करीब होटल व रिसॉर्ट हैं। क्रिसमस और न्यू इयर सेलिब्रेशन के मद्देनजर ये पैक रहते हैं। वहां डीजे का शोर, तेज लाइटों का इस्तेमाल, शाम ढलते ही वहां रहने वालों के जंगल की ओर रुख करने की शिकायतें मिलती रही हैं। इस बार ऐसा नहीं हो पाएगा। वन विभाग की कवायद में कार्बेट पार्क पर इस बार विशेष फोकस रहेगा।
Sunday, December 19, 2010
सेक्युलर होने की कोशिश में कम्युनल होते बुद्धिजीवी
बीते 28 अक्टूबर को प्रकाशित संजय कुंदन के लेख 'लव जिहाद कट्टर हिंदू दिमाग की उपज' के निष्कर्षों से सहमत होना मुश्किल है।वे लिखते हैं कि 'केरल में विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और श्रीराम सेना यह प्रचारित कर रहे हैं कि मुस्लिम कट्टरपंथी राज्य के मुसलमान युवकों को हिंदू लड़कियों से प्रेम-विवाह करने और उनका धर्म परिवतिर्त कराने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।'
कभी-कभी हम सेक्युलर होने की कोशिश में खुद ही कम्युनल बन जाते हैं। केरल में 'लव जिहाद' के मामले में भी ऐसा ही होता दिख रहा है। दक्षिण के इस तटवर्ती राज्य में विवाद तब शुरू हुआ जब एक हिंदू लड़की और एक ईसाई लड़की ने मुसलमान युवकों से शादी कर ली। इन लड़कियों के पेरंट्स ने कोर्ट में कहा कि 'मुसलमान युवकों ने उनकी लड़कियों को बरगला कर शादी कर ली है और उन युवकों का मकसद असल में इन लड़कियों का धर्म परिवर्तन करा कर उन्हें इस्लाम में शामिल करना और अपने मजहब को मानने वालों की आबादी बढ़ाना है।'
इसके बाद कोर्ट ने केरल पुलिस के डीजीपी जैकब पुनूज से इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट मांगी। जब उन लड़कियों को कोर्ट में पेश किया गया तो उन्होंने अपनी मर्जी से शादी करने की बात कही। इस पर कोर्ट ने राय दी कि दोनों लड़कियां कुछ दिन अपने पेरंट्स के साथ रहें और उन्हें समझाएं। विवाद ने तूल तब पकड़ा जब कुछ दिनों बाद लड़कियों ने कोर्ट में कहा कि मुसलमान युवकों ने जबर्दस्ती उनका धर्म परिवर्तन कराया और वे अपने माता-पिता के साथ ही रहना चाहती हैं। इसी के बाद कोर्ट में 'लव जिहाद' का मामला उठा।
इस टर्म का इस्तेमाल सबसे पहले पेरंट्स की याचिका में हुआ था। डीजीपी जैकब का कहना है कि इस टर्म को पहले शायद किसी वेबसाइट में भी इस्तेमाल किया जा चुका है। लेकिन 22 अक्टूबर को पेश डीजीपी की इस रिपोर्ट पर कोर्ट ने असंतोष जताया है। दिलचस्प तथ्य यह है कि डीजीपी ने केरल में लव जिहाद नाम के मूवमंट या संगठन की मौजूदगी की आशंका से साफ इनकार किया था।
पूरे केस को ध्यान से समझने पर कई बातें साफ हो जाती हैं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि लड़कियों पर अपने माता-पिता के पास वापस लौटने के लिए किसी तरह का दबाव डाला गया, सिवाय केस में शामिल मुसलमान युवक शहंशाह के आरोप के। कट्टरपंथी संगठनों ने बवाल जरूर किया, लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर वे इस मामले से जुड़े हुए नहीं थे।
केस का एक और पहलू यह है कि केरल सहित लगभग सभी दक्षिणी राज्यों में धर्मांतरण के मुद्दे पर आमने-सामने होने के बावजूद इस मसले पर ईसाई और हिंदू संगठन साथ आए। केरल कैथलिक बिशप काउंसिल और विश्व हिंदू परिषद, दोनों ने मुसलमानों की इस तरह की तथाकथित साजिश का पुरजोर विरोध किया। हमारे स्थानीय पत्रकार मित्र बताते हैं कि इस मामले को कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है। हालांकि उन्होंने 'लव जिहाद' की मौजूदगी की आशंका से भी साफ तौर पर इनकार नहीं किया।
लेकिन कुछ रिपोर्टों में सिर्फ शहंशाह के आरोपों को आधार बनाकर पुलिस और प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। क्या यह जरूरी है कि माइनॉरिटीज से हमदर्दी दिखाने के लिए पूरे सिस्टम को ही गलत ठहराया जाए? कट्टरपंथियों को किसी धर्म के साथ क्यों जोड़ा जाए? जैसे आतंकवादी, आतंकवादी होता है। कोई धर्म या समुदाय उसकी पहचान नहीं हो सकता। लेकिन ऐसे मामलों में कुछ बुद्धिजीवी चुप्पी साध लेते हैं, जो सीधे माइनॉरिटीज, खास तौर पर मुसलमानों से जुड़े होते हैं।
पिछले साल 19 सितंबर को दिल्ली में हुए बटला हाउस एनकाउंटर मामले में ऐसा ही देखने को मिला। कट्टरपंथी संगठनों ने खुलकर एनकाउंटर में पुलिस की नीयत पर उंगली उठाई। यहां तक कि कई लेवल पर पुलिस को क्लीन चिट मिलने के बावजूद ये संगठन बवाल करते रहे। सेक्युलर बनना या खुद को सेक्युलर दिखाना यहां फैशन बनता जा रहा है। मुसलमानों के हक में बात करना ठीक है, लेकिन इसके लिए हिंदुओं को गाली देने की प्रवृत्ति गलत है।09837261570
कभी-कभी हम सेक्युलर होने की कोशिश में खुद ही कम्युनल बन जाते हैं। केरल में 'लव जिहाद' के मामले में भी ऐसा ही होता दिख रहा है। दक्षिण के इस तटवर्ती राज्य में विवाद तब शुरू हुआ जब एक हिंदू लड़की और एक ईसाई लड़की ने मुसलमान युवकों से शादी कर ली। इन लड़कियों के पेरंट्स ने कोर्ट में कहा कि 'मुसलमान युवकों ने उनकी लड़कियों को बरगला कर शादी कर ली है और उन युवकों का मकसद असल में इन लड़कियों का धर्म परिवर्तन करा कर उन्हें इस्लाम में शामिल करना और अपने मजहब को मानने वालों की आबादी बढ़ाना है।'
इसके बाद कोर्ट ने केरल पुलिस के डीजीपी जैकब पुनूज से इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट मांगी। जब उन लड़कियों को कोर्ट में पेश किया गया तो उन्होंने अपनी मर्जी से शादी करने की बात कही। इस पर कोर्ट ने राय दी कि दोनों लड़कियां कुछ दिन अपने पेरंट्स के साथ रहें और उन्हें समझाएं। विवाद ने तूल तब पकड़ा जब कुछ दिनों बाद लड़कियों ने कोर्ट में कहा कि मुसलमान युवकों ने जबर्दस्ती उनका धर्म परिवर्तन कराया और वे अपने माता-पिता के साथ ही रहना चाहती हैं। इसी के बाद कोर्ट में 'लव जिहाद' का मामला उठा।
इस टर्म का इस्तेमाल सबसे पहले पेरंट्स की याचिका में हुआ था। डीजीपी जैकब का कहना है कि इस टर्म को पहले शायद किसी वेबसाइट में भी इस्तेमाल किया जा चुका है। लेकिन 22 अक्टूबर को पेश डीजीपी की इस रिपोर्ट पर कोर्ट ने असंतोष जताया है। दिलचस्प तथ्य यह है कि डीजीपी ने केरल में लव जिहाद नाम के मूवमंट या संगठन की मौजूदगी की आशंका से साफ इनकार किया था।
पूरे केस को ध्यान से समझने पर कई बातें साफ हो जाती हैं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि लड़कियों पर अपने माता-पिता के पास वापस लौटने के लिए किसी तरह का दबाव डाला गया, सिवाय केस में शामिल मुसलमान युवक शहंशाह के आरोप के। कट्टरपंथी संगठनों ने बवाल जरूर किया, लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर वे इस मामले से जुड़े हुए नहीं थे।
केस का एक और पहलू यह है कि केरल सहित लगभग सभी दक्षिणी राज्यों में धर्मांतरण के मुद्दे पर आमने-सामने होने के बावजूद इस मसले पर ईसाई और हिंदू संगठन साथ आए। केरल कैथलिक बिशप काउंसिल और विश्व हिंदू परिषद, दोनों ने मुसलमानों की इस तरह की तथाकथित साजिश का पुरजोर विरोध किया। हमारे स्थानीय पत्रकार मित्र बताते हैं कि इस मामले को कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है। हालांकि उन्होंने 'लव जिहाद' की मौजूदगी की आशंका से भी साफ तौर पर इनकार नहीं किया।
लेकिन कुछ रिपोर्टों में सिर्फ शहंशाह के आरोपों को आधार बनाकर पुलिस और प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। क्या यह जरूरी है कि माइनॉरिटीज से हमदर्दी दिखाने के लिए पूरे सिस्टम को ही गलत ठहराया जाए? कट्टरपंथियों को किसी धर्म के साथ क्यों जोड़ा जाए? जैसे आतंकवादी, आतंकवादी होता है। कोई धर्म या समुदाय उसकी पहचान नहीं हो सकता। लेकिन ऐसे मामलों में कुछ बुद्धिजीवी चुप्पी साध लेते हैं, जो सीधे माइनॉरिटीज, खास तौर पर मुसलमानों से जुड़े होते हैं।
पिछले साल 19 सितंबर को दिल्ली में हुए बटला हाउस एनकाउंटर मामले में ऐसा ही देखने को मिला। कट्टरपंथी संगठनों ने खुलकर एनकाउंटर में पुलिस की नीयत पर उंगली उठाई। यहां तक कि कई लेवल पर पुलिस को क्लीन चिट मिलने के बावजूद ये संगठन बवाल करते रहे। सेक्युलर बनना या खुद को सेक्युलर दिखाना यहां फैशन बनता जा रहा है। मुसलमानों के हक में बात करना ठीक है, लेकिन इसके लिए हिंदुओं को गाली देने की प्रवृत्ति गलत है।09837261570
Thursday, December 16, 2010
ब्लोगिंग को एक नई पहचान दे
आइये एक साथ बैठे , मिलकर कुछ चर्चा करे .... ब्लोगिंग को एक नई पहचान दे । ब्लोगिंग केवल शब्दों का खेल भर नही है ..... आइये कुछ जानकारी भी हासिल करे । खोजी प्रवृति के लोगों का दिल से स्वागत है ....
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