Sunday, December 19, 2010

सेक्युलर होने की कोशिश में कम्युनल होते बुद्धिजीवी

बीते 28 अक्टूबर को प्रकाशित संजय कुंदन के लेख 'लव जिहाद कट्टर हिंदू दिमाग की उपज' के निष्कर्षों से सहमत होना मुश्किल है।वे लिखते हैं कि 'केरल में विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और श्रीराम सेना यह प्रचारित कर रहे हैं कि मुस्लिम कट्टरपंथी राज्य के मुसलमान युवकों को हिंदू लड़कियों से प्रेम-विवाह करने और उनका धर्म परिवतिर्त कराने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।'

कभी-कभी हम सेक्युलर होने की कोशिश में खुद ही कम्युनल बन जाते हैं। केरल में 'लव जिहाद' के मामले में भी ऐसा ही होता दिख रहा है। दक्षिण के इस तटवर्ती राज्य में विवाद तब शुरू हुआ जब एक हिंदू लड़की और एक ईसाई लड़की ने मुसलमान युवकों से शादी कर ली। इन लड़कियों के पेरंट्स ने कोर्ट में कहा कि 'मुसलमान युवकों ने उनकी लड़कियों को बरगला कर शादी कर ली है और उन युवकों का मकसद असल में इन लड़कियों का धर्म परिवर्तन करा कर उन्हें इस्लाम में शामिल करना और अपने मजहब को मानने वालों की आबादी बढ़ाना है।'



इसके बाद कोर्ट ने केरल पुलिस के डीजीपी जैकब पुनूज से इस बारे में विस्तृत रिपोर्ट मांगी। जब उन लड़कियों को कोर्ट में पेश किया गया तो उन्होंने अपनी मर्जी से शादी करने की बात कही। इस पर कोर्ट ने राय दी कि दोनों लड़कियां कुछ दिन अपने पेरंट्स के साथ रहें और उन्हें समझाएं। विवाद ने तूल तब पकड़ा जब कुछ दिनों बाद लड़कियों ने कोर्ट में कहा कि मुसलमान युवकों ने जबर्दस्ती उनका धर्म परिवर्तन कराया और वे अपने माता-पिता के साथ ही रहना चाहती हैं। इसी के बाद कोर्ट में 'लव जिहाद' का मामला उठा।

इस टर्म का इस्तेमाल सबसे पहले पेरंट्स की याचिका में हुआ था। डीजीपी जैकब का कहना है कि इस टर्म को पहले शायद किसी वेबसाइट में भी इस्तेमाल किया जा चुका है। लेकिन 22 अक्टूबर को पेश डीजीपी की इस रिपोर्ट पर कोर्ट ने असंतोष जताया है। दिलचस्प तथ्य यह है कि डीजीपी ने केरल में लव जिहाद नाम के मूवमंट या संगठन की मौजूदगी की आशंका से साफ इनकार किया था।

पूरे केस को ध्यान से समझने पर कई बातें साफ हो जाती हैं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि लड़कियों पर अपने माता-पिता के पास वापस लौटने के लिए किसी तरह का दबाव डाला गया, सिवाय केस में शामिल मुसलमान युवक शहंशाह के आरोप के। कट्टरपंथी संगठनों ने बवाल जरूर किया, लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर वे इस मामले से जुड़े हुए नहीं थे।

केस का एक और पहलू यह है कि केरल सहित लगभग सभी दक्षिणी राज्यों में धर्मांतरण के मुद्दे पर आमने-सामने होने के बावजूद इस मसले पर ईसाई और हिंदू संगठन साथ आए। केरल कैथलिक बिशप काउंसिल और विश्व हिंदू परिषद, दोनों ने मुसलमानों की इस तरह की तथाकथित साजिश का पुरजोर विरोध किया। हमारे स्थानीय पत्रकार मित्र बताते हैं कि इस मामले को कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है। हालांकि उन्होंने 'लव जिहाद' की मौजूदगी की आशंका से भी साफ तौर पर इनकार नहीं किया।

लेकिन कुछ रिपोर्टों में सिर्फ शहंशाह के आरोपों को आधार बनाकर पुलिस और प्रशासन को कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। क्या यह जरूरी है कि माइनॉरिटीज से हमदर्दी दिखाने के लिए पूरे सिस्टम को ही गलत ठहराया जाए? कट्टरपंथियों को किसी धर्म के साथ क्यों जोड़ा जाए? जैसे आतंकवादी, आतंकवादी होता है। कोई धर्म या समुदाय उसकी पहचान नहीं हो सकता। लेकिन ऐसे मामलों में कुछ बुद्धिजीवी चुप्पी साध लेते हैं, जो सीधे माइनॉरिटीज, खास तौर पर मुसलमानों से जुड़े होते हैं।

पिछले साल 19 सितंबर को दिल्ली में हुए बटला हाउस एनकाउंटर मामले में ऐसा ही देखने को मिला। कट्टरपंथी संगठनों ने खुलकर एनकाउंटर में पुलिस की नीयत पर उंगली उठाई। यहां तक कि कई लेवल पर पुलिस को क्लीन चिट मिलने के बावजूद ये संगठन बवाल करते रहे। सेक्युलर बनना या खुद को सेक्युलर दिखाना यहां फैशन बनता जा रहा है। मुसलमानों के हक में बात करना ठीक है, लेकिन इसके लिए हिंदुओं को गाली देने की प्रवृत्ति गलत है।09837261570

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