Friday, April 6, 2012

बहुमत, बहुगुणा और बखेड़ा

देहरादून, विधानसभा चुनाव नतीजों को घोषित हुए एक महीना बीत चुका है लेकिन उत्तराखंड की जनता ने सियासी दलों को जो खंडित जनादेश दिया है उसने दलों के भीतर नेताओं की मर्यादाओं को भी खंड-खंड कर दिया है। कांग्रेस तो इस खंडित जनादेश से परेशान है ही भाजपा की मुश्किलें भी कम नहीं हैं। भाजपा और कांग्रेस को मिले खंडित जनादेश में छोटे दलों और निर्दलियों की बल्ले-बल्ले हो रही है। कांग्रेस सरकार बनाने में भले ही कामयाब हो गई हो लेकिन समर्थन दे रहे निर्दलीय और क्षेत्रीय दलों के विधायक अब भी बंदूक लेकर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को डरा रहे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री की कैबिनेट के सदस्य भी मौका देखकर उन्हें चाकू दिखाकर डराने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में संभवतः मुख्यमंत्री विजय बहुुगुणा रात को संतुष्ठी के इस भाव से झपकी लेते होंगे कि ‘चलिए एक दिन और कट गया’। खंडित जनादेश के कारण उत्तराखंड में सरकार होने के बावजूद सरकार होने का अहसास ही नहीं हो रहा है। यह सिर्फ विजय बहुगुणा या कांग्रेस की चिन्ता नहीं है बल्कि यह पूरे उत्तराखंड की चिन्ता है। सरकार किसी भी दल की बने लेकिन यदि वह बहुमत में नहीं है तो उस सरकार के चलने का कोई औचित्य नहीं रह गया है। जिस तरह से खंडित जनादेश ने सरकार चलाने वालों को असहाय कर दिया है उससे तीव्र गति से विकास की कल्पना करना बेईमानी सा लगता है। इसमें दोष मुख्यमंत्री का नहीं है बल्कि सरकार चलाने के लिए जो आंकड़ा चाहिए, दोष उस आंकडे़ तक नहीं पहुंच पाने का है। दुर्भाग्य से जिनके बूते सरकार बनाने का आंकड़ा विजय बहुगुणा छू रहे हैं उनकी प्राथमिकता में विकास की बजाए मंत्री पद है। ऐसे में बहुगुणा यदि उन्हें खुश कर रहे हैं तो पार्टी के भीतर डैमेज कंट्रोल करना टेड़ी खीर साबित हो रहा है। नतीजा सामने है कि सरकार होने का अहसास ही नहीं हो रहा है।
  खंडित जनादेश ने जिस तरह से सरकार व उसके मुखिया को पंगु बनाया है। उससे यह चिन्ता बढ़ गयी है कि क्या सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी। और यदि सरकार कार्यकाल पूरा कर सकी तो क्या मुख्यमंत्री फ्रंटपुफट पर रहकर विकास के चौके-छक्के मार पायेेंगे। यह बड़ा सवाल है। जिस तरह से मौजूदा सरकार फिलहाल बैकपफुट पर है उसने मतदाता को यह अहसास करा दिया है कि लोकतंत्र के महापर्व में जनता जनार्दन को समझ-बूझकर मतदान करने की है। किसी एक दल की सरकार यदि पूर्ण बहुमत में होगी तो उस दल के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं होगी।

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